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हिंदी के ऐतिहासिक हमसफ़र : उर्दू, अंग्रेजी और तकनीक

        हिंदी के ऐतिहासिक हमसफ़र  :  उर्दू ,  अंग्रेजी और तकनीक   Also published as an opinion piece in  Dainik Bhaskar  on Hindi Diwas (14 th  Sep 2021)       वैसे तो हिंदीभाषा की उम्र क़रीबन  1000  वर्ष हैं पर खड़ी बोली की आयु तो सिर्फ़  200  वर्ष है और अगर घटनापूर्ण इतिहास की बात करें तो पिछले  100  वर्षों अपने आप में एक विशेष स्थान रखते हैं । जितना  ‘हैपनिंग’ या जितना घटनापूर्ण हिंदी के लिए ये  100  वर्ष रहें हैं, उस उच्च स्तर का उतार-चढ़ाव किसी और भाषा ने कदाचित ही देखा होगा।     1920  के दशक में हिंदी की  सबसे प्यारी हमसफ़र थी उर्दू   । असहयोग आंदोलन और खिलाफ़ती आँदोलन के आपसी तालमेल के दौरान, दोनो भाषाओं में प्रेम इतना गाढ़ा हो गया था की बोलते वक़्त ये पता ही चलता था कि कहाँ उर्दू ख़त्म हुई और हिंदी शुरू हो गयी।   बिना उर्दू के, हिंदी भाषियों को अपने हक़ की लड़ाई के लिए ना वकील मिलता, और ना ही हलफ़नामा। और बिना हिंदी के व्याकरण के, उर्दू लड़खड़ा के गिर पड़ती। भाव वाचक संज्ञाओं ( ज़रूरत, मेहनत,  मदद,   मजबूरी,) के लिये जहां हिंदी बे-झिझक उधार माँगने  उर्दू के पास चली जाती, तो वही

हिंदीभाषा : पर्दे से परिवर्तन

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    हिंदीभाषा : पर्दे से परिवर्तन    भाषा के लिए अक्सर उस की प्राचीनता उनके गौरव का विषय होता है। किंतु विश्व में सबसे अधिक बोले जानी वाली पाँच भाषाओं में सबसे युवा भाषा होने के कारण हिन्दी का यौवन ही उसका गर्व-बिंदु है। देवनागरी लिखावट वाली खड़ी बोली - जो हिंदी का वर्तमान प्रचलित रूप है - की उम्र २०० वर्ष से भी कम है। और इस छोटे से अंतराल में पिछले ७० सालों में हिंदी का रूपांतरण जिस रफ़्तार से हुआ है, वह अपनेआप में एक शोध का विषय तो है ही पर साथ-ही-साथ इस भाषा के यौवन का द्योतक भी है।    ७० साल के इस सफ़ारनामे को मूर्त-रूप से तो कुछ बिरले भाग्यशालियों ने ही अनुभव किया होगा, पर बाक़ी लोग भी हिंदी सिनेजगत की नज़रों के ज़रिए से हिंदी के इस रूपांतरण के चश्मदीद गवाह बन सकते हैं।    ४० और ५० के दशक की हर फ़िल्म में उस फ़िल्म की भाषा का झुकाव बड़ी आसानी से दृष्टिगोचर होता था - या तो भाषा उर्दूनुमा होती या फिर हिंदीरस से परिपूर्ण या फिर हिंदुस्तानी लहजे वाली। हिंदुस्तानीभाषा , हिंदी-उर्दू का एक नाप-तुला मिश्रण, उस समय लोकप्रियता के पायदान नम्बर एक पर थी। पर भाषा का झुकाव जो भी हो, दर्शकों का

Hindi Day Blog : हिंदी बने एक एक्स-फेक्टर (article in Hindi)

हिंदी बने एक एक्स-फेक्टर Also published in Navbharat Times on 9 th Sep 2018. ( on the occasion of Hindi Divas - 14th Sep ) http://epaper.navbharattimes.com/details/808-69551-1.html जब वह बोली जाती है तो उर्दू के निकट लगती है, लिखी जाती है तो मराठी दिखती है । अपना नाम उसे फ़ारसी से मिला है और मूल उसका है संस्कृत । बहु-वर्णीय हमारी हिंदी भाषा - गंगा नदी के समान है। अलकनंदा, मंदाकिनी, भागीरथी जैसी अन्य अलग पहचानें हैं, अलग अलग चरित्र है, फिर भी समग्र रूप से गंगा है।  हिंदी में थोड़े से उर्दू की शब्द मिलने से वह हिंदुस्तानी हो जाती है। नुक़्तों और महावरों से ज़रा शृंगार कर दो तो उसकी शक्ल बदल कर उर्दू की तरह हो जाती है।अंग्रेज़ी शब्दों का मिश्रण करने पर हिंदी हिंग्लिश बन जाती है। किसी भी रूप में हो, हिंदी का काम तो भारत में भारतियों के बीच और दुनिया भार में दक्षिण एशियाइयों के बीच संवाद और भावनात्मक जुड़ाव पैदा करना है। एक भाषा से भी अधिक, हिंदी एक आंदोलन है। भाषाएँ तो इंसासों को बाँट भी सकती हैं, लेकिन आंदोलन लोगों को जोड़ता है। आंदोलन, किसी तयशुदा रास